श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 30: सीता का वन में चलने के लिये अधिकआग्रह, विलाप और घबराहट देखकर श्रीराम का उन्हें साथ ले चलने की स्वीकृति देना  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  2.30.40 
 
 
सा हि दिष्टानवद्याङ्गि वनाय मदिरेक्षणे।
अनुगच्छस्व मां भीरु सहधर्मचरी भव॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  सौंदर्य से परिपूर्ण नेत्रों वाली देवी! अब मैं तुम्हें जंगल में चलने के लिए आदेश देता हूँ। डरो मत! तुम मेरी पत्नी बनो और मेरे साथ धर्म का पालन करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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