श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम का कैकेयी से पिता के चिन्तित होने का कारण पूछना,कैकेयी का कठोरतापूर्वक अपने माँगे हुए वरों का वृत्तान्त बताना  »  श्लोक 28-30
 
 
श्लोक  2.18.28-30 
 
 
अहो धिङ् नार्हसे देवि वक्तुं मामीदृशं वच:।
अहं हि वचनाद् राज्ञ: पतेयमपि पावके॥ २८॥
भक्षयेयं विषं तीक्ष्णं पतेयमपि चार्णवे।
नियुक्तो गुरुणा पित्रा नृपेण च हितेन च॥ २९॥
तद् ब्रूहि वचनं देवि राज्ञो यदभिकांक्षितम्।
करिष्ये प्रतिजाने च रामो द्विर्नाभिभाषते॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी! यह कहना तुम्हारे मुँह से नहीं निकलना चाहिए। मैं महाराज की आज्ञा से आग में कूद सकता हूँ, विष का सेवन कर सकता हूँ और समुद्र में भी गिर सकता हूँ। महाराज मेरे गुरु, पिता और सबकुछ हैं। उनकी आज्ञा मानने से मैं पीछे नहीं हटूँगा। इसलिए देवी! राजा जो चाहते हैं, वह बताओ! मैं वचन देता हूँ कि मैं उसे पूरा करूँगा। राम दो तरह की बात नहीं करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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