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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय
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श्लोक 20-21h
श्लोक
2.13.20-21h
साधुवृत्तस्य दीनस्य त्वद्गतस्य गतायुष:॥ २०॥
प्रसाद: क्रियतां भद्रे देवि राज्ञो विशेषत:।
अनुवाद
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कल्याणमयी देवी! मैं दशरथ सदाचारी, दीन और तुम्हारा आश्रित हूँ। मेरी आयु समाप्त हो रही है और मैं विशेष रूप से एक राजा हूँ। मेरी प्रार्थना है कि मुझ पर कृपा करें।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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