श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 65-66
 
 
श्लोक  2.12.65-66 
 
 
यदा हि बहवो वृद्धा गुणवन्तो बहुश्रुता:॥ ६५॥
परिप्रक्ष्यन्ति काकुत्स्थं वक्ष्यामीह कथं तदा।
कैकेय्या क्लिश्यमानेन पुत्र: प्रव्राजितो मया॥ ६६॥
 
 
अनुवाद
 
  जब बहुत से गुणवान, जानकार और बूढ़े व्यक्ति मेरे पास आकर मुझसे पूछेंगे कि श्रीराम कहाँ हैं? तब मैं उनसे कैसे कहूँगा कि कैकेयी के दबाव में आकर मैंने अपने बेटे को घर से निकाल दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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