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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 113: भरत का भरद्वाज से मिलते हुए अयोध्या को लौट आना
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श्लोक 4
श्लोक
2.113.4
पश्यन् धातुसहस्राणि रम्याणि विविधानि च।
प्रययौ तस्य पार्श्वेन ससैन्यो भरतस्तदा॥ ४॥
अनुवाद
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चित्रकूट के किनारे से होते हुए भरत ने अपनी सेना के साथ हजारों प्रकार की रमणीय और विविध धातुओं को देखा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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