श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 113: भरत का भरद्वाज से मिलते हुए अयोध्या को लौट आना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.113.18 
 
 
तमृषिं तु महाप्राज्ञमुक्तवाक्यं कृताञ्जलि:।
आमन्त्रयितुमारेभे चरणावुपगृह्य च॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  तब भरत ने महाप्रज्ञ महर्षि की बात सुनकर हाथ जोड़कर उनके चरणों को छुआ, फिर वे उनसे जाने की आज्ञा लेने के लिए आगे आए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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