श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 113: भरत का भरद्वाज से मिलते हुए अयोध्या को लौट आना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.113.17 
 
 
अनृण: स महाबाहु: पिता दशरथस्तव।
यस्य त्वमीदृश: पुत्रो धर्मात्मा धर्मवत्सल:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे महाबली पिता राजा दशरथ ने तुम जैसे धर्म प्रेमी और धर्मात्मा पुत्र को पाकर अपने जीवन के सभी ऋणों से मुक्ति पा ली है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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