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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 113: भरत का भरद्वाज से मिलते हुए अयोध्या को लौट आना
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श्लोक 14
श्लोक
2.113.14
निवृत्तोऽहमनुज्ञातो रामेण सुमहात्मना।
अयोध्यामेव गच्छामि गृहीत्वा पादुके शुभे॥ १४॥
अनुवाद
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तत्पश्चात् मैं श्रीरामचन्द्रजी की आज्ञा से लौट आया हूँ और उनके द्वारा प्रदान की गई इन शुभ और मंगलकारी चरणपादुकाओं को लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान कर रहा हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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