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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 113: भरत का भरद्वाज से मिलते हुए अयोध्या को लौट आना
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श्लोक 13
श्लोक
2.113.13
एवमुक्तो वसिष्ठेन राघव: प्राङ्मुख: स्थित:।
पादुके हेमविकृते मम राज्याय ते ददौ॥ १३॥
अनुवाद
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वसिष्ठ जी के ऐसा कहने पर राघव जी ने पूर्व दिशा की तरफ मुख करके खड़े हुए और अपने राज्य का भार संभालने हेतु मुझे उन स्वर्ण जड़ित पादुकाओं को दे दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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