श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 112: ऋषियों का भरत को श्रीराम की आज्ञा के अनुसार लौट जाने की सलाह देना, भरत का पुनः प्रार्थना करना, श्रीराम का उन्हें चरणपादुका देकर विदा करना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.112.20 
 
 
एवं ब्रुवाणं भरत: कौसल्यासुतमब्रवीत्।
तेजसाऽऽदित्यसंकाशं प्रतिपच्चन्द्रदर्शनम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  तेज में सूर्य के समान और दर्शन में प्रतिपदा के चन्द्रमा की तरह आनंददायक कौसल्यानंदन श्रीराम के इस प्रकार कहने पर भरत ने उनसे इस प्रकार कहा-॥ २०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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