श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 112: ऋषियों का भरत को श्रीराम की आज्ञा के अनुसार लौट जाने की सलाह देना, भरत का पुनः प्रार्थना करना, श्रीराम का उन्हें चरणपादुका देकर विदा करना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.112.15 
 
 
तमङ्के भ्रातरं कृत्वा रामो वचनमब्रवीत्।
श्यामं नलिनपत्राक्षं मत्तहंसस्वर: स्वयम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  तब श्रीरामचन्द्रजी ने श्याम वर्ण के कमल-जैसी आँखों वाले अपने भाई भरत को उठाकर गोद में बिठा लिया और मस्त मदमत्त हंस की तरह मधुर स्वर में स्वयं ही यह बात कही-।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.