श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 111: श्रीराम को पिता की आज्ञा के पालन से विरत होते न देख भरत का धरना देने को तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.111.30 
 
 
जानामि भरतं क्षान्तं गुरुसत्कारकारिणम्।
सर्वमेवात्र कल्याणं सत्यसंधे महात्मनि॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं जानता हूँ कि भरत अत्यंत क्षमाशील हैं और गुरुजनों की सेवा करने वाले हैं। इस सत्यनिष्ठ महात्मा में सभी कल्याणकारी गुण विद्यमान हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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