श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 111: श्रीराम को पिता की आज्ञा के पालन से विरत होते न देख भरत का धरना देने को तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.111.27 
 
 
धर्मात्मा तस्य सत्येन भ्रातुर्वाक्येन विस्मित:।
उवाच राम: सम्प्रेक्ष्य पौरजानपदं जनम्॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मात्मा श्रीराम भाई भरत के सत्यवादी शब्दों को सुनकर विस्मित हो गए और उन्होंने अपनी प्रजा तथा राज्य में रहने वाले लोगों को देखते हुए कहा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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