श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 111: श्रीराम को पिता की आज्ञा के पालन से विरत होते न देख भरत का धरना देने को तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  2.111.26 
 
 
यदि त्ववश्यं वस्तव्यं कर्तव्यं च पितुर्वच:।
अहमेव निवत्स्यामि चतुर्दश वने समा:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि पिताजी की आज्ञा का पालन करना और वन में रहना अनिवार्य है, तो मैं आपके बदले चौदह वर्षों तक वन में निवास करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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