ते तदोचुर्महात्मानं पौरजानपदा जना:।
काकुत्स्थमभिजानीम: सम्यग् वदति राघव:॥ २०॥
अनुवाद
तब उस नगर के रहने वाले लोगों और आस-पास के ज़िलों के रहने वालों ने भरत जी से कहा - "हे महात्मा, हम जानते हैं कि काकुत्स्थ श्री रामचंद्र जी के प्रति आप रघुकुल में तिलक जैसे भरत जी ठीक ही कहते हैं।"