श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 111: श्रीराम को पिता की आज्ञा के पालन से विरत होते न देख भरत का धरना देने को तैयार होना तथा श्रीराम का उन्हें समझाकर अयोध्या लौटने की आज्ञा देना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.111.20 
 
 
ते तदोचुर्महात्मानं पौरजानपदा जना:।
काकुत्स्थमभिजानीम: सम्यग् वदति राघव:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  तब उस नगर के रहने वाले लोगों और आस-पास के ज़िलों के रहने वालों ने भरत जी से कहा - "हे महात्मा, हम जानते हैं कि काकुत्स्थ श्री रामचंद्र जी के प्रति आप रघुकुल में तिलक जैसे भरत जी ठीक ही कहते हैं।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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