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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 110: वसिष्ठजी का ज्येष्ठ के ही राज्याभिषेक का औचित्य सिद्ध करना और श्रीराम से राज्य ग्रहण करने के लिये कहना
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श्लोक 26
श्लोक
2.110.26
असमञ्जस्तु पुत्रोऽभूत् सगरस्येति न: श्रुतम्।
जीवन्नेव स पित्रा तु निरस्त: पापकर्मकृत्॥ २६॥
अनुवाद
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हमने सुना है कि सगर के पुत्र असमञ्ज थे जो पापकर्म करने के कारण अपने पिता द्वारा जीवनकाल में ही राज्य से निकाल दिए गए थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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