श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 110: वसिष्ठजी का ज्येष्ठ के ही राज्याभिषेक का औचित्य सिद्ध करना और श्रीराम से राज्य ग्रहण करने के लिये कहना  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  2.110.18-19 
 
 
द्वे चास्य भार्ये गर्भिण्यौ बभूवतुरिति श्रुति:।
तत्र चैका महाभागा भार्गवं देववर्चसम्॥ १८॥
ववन्दे पद्मपत्राक्षी कांक्षिणी पुत्रमुत्तमम्।
एका गर्भविनाशाय सपत्न्यै गरलं ददौ॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  असित की दो पत्नियाँ गर्भवती थीं, जिसमें से एक पद्मपत्राक्षी ने श्रेष्ठ पुत्र प्राप्त करने की कामना से भृगु वंश के तेजस्वी च्यवन मुनि के चरणों में वंदन किया, जबकि दूसरी रानी ने अपनी सौतन के गर्भ का विनाश करने के लिए उसे जहर दे दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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