श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  2.109.39 
 
 
स चापि कालोऽयमुपागत: शनै-
र्यथा मया नास्तिकवागुदीरिता।
निवर्तनार्थं तव राम कारणात्
प्रसादनार्थं च मयैतदीरितम्॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, मैं ऐसा समय आ गया था, जब मैंने धीरे-धीरे नास्तिकों जैसी बातें कह डालीं। श्रीराम! मैंने जो ये बातें कहीं, उनका उद्देश्य सिर्फ यही था कि किसी तरह आपको राज़ी करके अयोध्या लौटने के लिए तैयार कर लूं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे नवाधिकशततम: सर्ग:॥ १०९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें एक सौ नौवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १०९॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.