श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  2.109.37 
 
 
इति ब्रुवन्तं वचनं सरोषं
रामं महात्मानमदीनसत्त्वम्।
उवाच पथ्यं पुनरास्तिकं च
सत्यं वच: सानुनयं च विप्र:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा श्रीराम स्वभाव से ही दैन्य भाव से रहित थे। इसलिए जब उन्होंने रोष पूर्वक यह बात कही, तब ब्राह्मण जाबालि ने विनयपूर्वक यह आस्तिकता पूर्ण, सत्य एवं हितकर वचन कहा-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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