इति ब्रुवन्तं वचनं सरोषं
रामं महात्मानमदीनसत्त्वम्।
उवाच पथ्यं पुनरास्तिकं च
सत्यं वच: सानुनयं च विप्र:॥ ३७॥
अनुवाद
महात्मा श्रीराम स्वभाव से ही दैन्य भाव से रहित थे। इसलिए जब उन्होंने रोष पूर्वक यह बात कही, तब ब्राह्मण जाबालि ने विनयपूर्वक यह आस्तिकता पूर्ण, सत्य एवं हितकर वचन कहा-