श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  2.109.34 
 
 
यथा हि चोर: स तथा हि बुद्ध-
स्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि।
तस्माद्धि य: शक्यतम: प्रजानां
स नास्तिके नाभिमुखो बुध: स्यात्॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे चोर दंडनीय होता है, उसी प्रकार बुद्ध और तथागत (वेद विरोधी बुद्धिजीवी) और नास्तिक (चार्वाक) भी दंडनीय हैं। इसलिए, राजा को प्रजा पर अनुग्रह करने के लिए नास्तिक को चोर के समान दंड देना चाहिए। लेकिन, जो नास्तिक वश में न हो, विद्वान ब्राह्मण को कभी भी उसके प्रति उन्मुख नहीं होना चाहिए और उससे बातचीत भी नहीं करनी चाहिए।
 
 
 
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