श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  2.109.29 
 
 
शतं क्रतूनामाहृत्य देवराट् त्रिदिवं गत:।
तपांस्युग्राणि चास्थाय दिवं प्राप्ता महर्षय:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  शृति के अनुसार, देवराज इंद्र ने सौ यज्ञों का अनुष्ठान करके स्वर्गलोक प्राप्त किया। महर्षियों ने भी उग्र तपस्या करके दिव्य लोकों में स्थान प्राप्त किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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