वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन
»
श्लोक 29
श्लोक
2.109.29
शतं क्रतूनामाहृत्य देवराट् त्रिदिवं गत:।
तपांस्युग्राणि चास्थाय दिवं प्राप्ता महर्षय:॥ २९॥
अनुवाद
play_arrowpause
शृति के अनुसार, देवराज इंद्र ने सौ यज्ञों का अनुष्ठान करके स्वर्गलोक प्राप्त किया। महर्षियों ने भी उग्र तपस्या करके दिव्य लोकों में स्थान प्राप्त किया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.