वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन
»
श्लोक 28
श्लोक
2.109.28
कर्मभूमिमिमां प्राप्य कर्तव्यं कर्म यच्छुभम्।
अग्निर्वायुश्च सोमश्च कर्मणां फलभागिन:॥ २८॥
अनुवाद
play_arrowpause
इस कर्मभूमि को प्राप्त करके मनुष्य को शुभ कर्म अवश्य करने चाहिए। अग्नि, वायु और सोम ये भी मनुष्य के कर्मों के फल के भागीदार होते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.