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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 109: श्रीराम के द्वारा जाबालि के नास्तिक मत का खण्डन करके आस्तिक मत का स्थापन
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श्लोक 24
श्लोक
2.109.24
कथं ह्यहं प्रतिज्ञाय वनवासमिमं गुरो:।
भरतस्य करिष्यामि वचो हित्वा गुरोर्वच:॥ २४॥
अनुवाद
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मैंने अपने पिताजी के सामने जंगल में रहने की प्रतिज्ञा की है। अब मैं उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके भरत की बात कैसे मान सकता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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