श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 105: भरत का श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिये कहना, श्रीराम का पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये ही राज्य ग्रहण न करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय बताना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  2.105.7 
 
 
सुजीवं नित्यशस्तस्य य: परैरुपजीव्यते।
राम तेन तु दुर्जीवं य: परानुपजीवति॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! जिसके पास आकर दूसरे लोग अपना जीवनयापन करते हैं, उसका जीवन श्रेष्ठ है और जो दूसरों के सहारे रहकर अपना जीवन व्यतीत करता है, उसका जीवन दुखी और कष्टदायक होता है। इसलिए आपके लिए राज्य करना ही उचित है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.