वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 105: भरत का श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिये कहना, श्रीराम का पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये ही राज्य ग्रहण न करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय बताना
»
श्लोक 5
श्लोक
2.105.5
महतेवाम्बुवेगेन भिन्न: सेतुर्जलागमे।
दुरावरं त्वदन्येन राज्यखण्डमिदं महत्॥ ५॥
अनुवाद
play_arrowpause
विशाल वर्षा के वेग से टूटे हुए पुल की भाँति इस विशाल राज्यखंड को सँभालना आपके अतिरिक्त अन्य किसी के लिए अत्यंत कठिन है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.