श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 105: भरत का श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिये कहना, श्रीराम का पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये ही राज्य ग्रहण न करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय बताना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.105.5 
 
 
महतेवाम्बुवेगेन भिन्न: सेतुर्जलागमे।
दुरावरं त्वदन्येन राज्यखण्डमिदं महत्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  विशाल वर्षा के वेग से टूटे हुए पुल की भाँति इस विशाल राज्यखंड को सँभालना आपके अतिरिक्त अन्य किसी के लिए अत्यंत कठिन है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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