श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 105: भरत का श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिये कहना, श्रीराम का पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये ही राज्य ग्रहण न करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय बताना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  2.105.21 
 
 
आत्मानमनुशोच त्वं किमन्यमनुशोचसि।
आयुस्तु हीयते यस्य स्थितस्यास्य गतस्य च॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  आत्म चिंतन करो, दूसरों के लिए बार-बार शोक क्यों करते हो। इस लोक में स्थित हो या अन्यत्र चला गया हो, प्रत्येक की आयु निरंतर क्षीण होती जा रही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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