श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 105: भरत का श्रीराम को राज्य ग्रहण करने के लिये कहना, श्रीराम का पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये ही राज्य ग्रहण न करके वन में रहने का ही दृढ़ निश्चय बताना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.105.20 
 
 
अहोरात्राणि गच्छन्ति सर्वेषां प्राणिनामिह।
आयूंषि क्षपयन्त्याशु ग्रीष्मे जलमिवांशव:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  अहोरात्रि यानी दिन और रात लगातार बीतते जा रहे हैं और इस संसार में सभी प्राणियों की आयु यानी उम्र का नाश बहुत तेजी से हो रहा है। ठीक वैसे ही जैसे गर्मियों के मौसम में सूर्य की तेज किरणें पानी को जल्दी से सुखा देती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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