श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 104: श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के द्वारा माताओं की चरणवन्दना तथा वसिष्ठजी को प्रणाम करके श्रीराम आदि का सबके साथ बैठना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  2.104.28 
 
 
पुरोहितस्याग्निसमस्य तस्य वै
बृहस्पतेरिन्द्र इवामराधिप:।
प्रगृह्य पादौ सुसमृद्धतेजस:
सहैव तेनोपविवेश राघव:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे देवताओं के राजा इंद्र बृहस्पति के चरणों को स्पर्श करते हैं, उसी प्रकार अग्नि के समान प्रज्वलित तेजस्वी पुरोहित वसिष्ठ जी के दोनों चरणों को पकड़कर श्री रामचंद्र जी उनके साथ ही पृथ्वी पर बैठ गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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