श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 103: श्रीराम आदि का विलाप, पिता के लिये जलाञ्जलि-दान, पिण्डदान और रोदन  »  श्लोक 26-27
 
 
श्लोक  2.103.26-27 
 
 
प्रगृह्य तु महीपालो जलापूरितमञ्जलिम्।
दिशं याम्यामभिमुखो रुदन् वचनमब्रवीत्॥ २६॥
एतत् ते राजशार्दूल विमलं तोयमक्षयम्।
पितृलोकगतस्याद्य मद्दत्तमुपतिष्ठतु॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  पृथ्वीपालक श्रीरामने जलसे भरी हुई अञ्जलि ले दक्षिण दिशाकी ओर मुँह करके रोते हुए इस प्रकार कहा—‘मेरे पूज्य पिता राजशिरोमणि महाराज दशरथ! आज मेरा दिया हुआ यह निर्मल जल पितृलोकमें गये हुए आपको अक्षयरूपसे प्राप्त हो’॥ २६-२७॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.