श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 100: श्रीराम का भरत को कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना  »  श्लोक 76
 
 
श्लोक  2.100.76 
 
 
राजा तु धर्मेण हि पालयित्वा
महीपतिर्दण्डधर: प्रजानाम्।
अवाप्य कृत्स्नां वसुधां यथाव-
दितश्च्युत: स्वर्गमुपैति विद्वान्॥ ७६॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार, राजा धर्म के अनुसार प्रजाओं का पालन करते हुए और दण्ड को यथावत् रूप से धारण करते हुए पूरी पृथ्वी पर अपना अधिकार स्थापित करता है और शरीर त्यागने के पश्चात स्वर्गलोक प्राप्त करता है।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे शततम: सर्ग:॥ १००॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें सौवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १००॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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