श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 100: श्रीराम का भरत को कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना  »  श्लोक 74
 
 
श्लोक  2.100.74 
 
 
यां वृत्तिं वर्तते तातो यां च न: प्रपितामह:।
तां वृत्तिं वर्तसे कच्चिद् या च सत्पथगा शुभा॥ ७४॥
 
 
अनुवाद
 
  क्या तुम उस व्यवसाय का पालन करते हो जिसे तुम्हारे पिताजी करते हैं, जिस आचरण का पालन तुम्हारे पूर्वजों ने किया है, जिसे अच्छे लोग पसंद करते हैं और जो कल्याण का मूल है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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