यां वृत्तिं वर्तते तातो यां च न: प्रपितामह:।
तां वृत्तिं वर्तसे कच्चिद् या च सत्पथगा शुभा॥ ७४॥
अनुवाद
क्या तुम उस व्यवसाय का पालन करते हो जिसे तुम्हारे पिताजी करते हैं, जिस आचरण का पालन तुम्हारे पूर्वजों ने किया है, जिसे अच्छे लोग पसंद करते हैं और जो कल्याण का मूल है?