वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 100: श्रीराम का भरत को कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना
»
श्लोक 58
श्लोक
2.100.58
व्यसने कच्चिदाढॺस्य दुर्बलस्य च राघव।
अर्थं विरागा: पश्यन्ति तवामात्या बहुश्रुता:॥ ५८॥
अनुवाद
play_arrowpause
रघुकुल भूषण! यदि किसी धनी और गरीब व्यक्ति के बीच कोई विवाद होता है और वह विवाद राज्य के न्यायालय में निर्णय के लिए पहुँचता है, तो आपके बहुज्ञ मंत्री धन आदि के लोभ को त्यागकर इस मामले पर विचार करते हैं, है न?
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.