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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 100: श्रीराम का भरत को कुशल-प्रश्न के बहाने राजनीति का उपदेश करना
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श्लोक 28
श्लोक
2.100.28
कच्चित् त्वां नावजानन्ति याजका: पतितं यथा।
उग्रप्रतिग्रहीतारं कामयानमिव स्त्रिय:॥ २८॥
अनुवाद
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क्या प्रजा तुम्हारा अनादर करती है, जैसे पवित्र याजक पतित यज्ञ के अन्न को और स्त्रियाँ कामदेव से पीड़ित पुरुष को तिरस्कार कर देती हैं?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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