श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 10: राजा दशरथ का कैकेयी के भवन में जाना, उसे कोपभवन में स्थित देखकर दुःखी होना और उसको अनेक प्रकार से सान्त्वना देना  »  श्लोक 36-37
 
 
श्लोक  2.10.36-37 
 
 
यावदावर्तते चक्रं तावती मे वसुंधरा॥ ३६॥
द्राविडा: सिन्धुसौवीरा: सौराष्ट्रा दक्षिणापथा:।
वङ्गाङ्गमगधा मत्स्या: समृद्धा: काशिकोसला:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  जहाँ तक सूर्य घूमता है वहाँ तक पूरी पृथ्वी पर मेरा अधिकार है। द्रविड़, सिंधु-सौवीर, सौराष्ट्र, दक्षिण भारत के सभी क्षेत्र और अंग, वंग, मगध, मत्स्य, काशी और कोशल ये सभी समृद्ध देशों पर मेरा आधिपत्य है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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