श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 10: राजा दशरथ का कैकेयी के भवन में जाना, उसे कोपभवन में स्थित देखकर दुःखी होना और उसको अनेक प्रकार से सान्त्वना देना  »  श्लोक 22-23h
 
 
श्लोक  2.10.22-23h 
 
 
तत्र तां पतितां भूमौ शयानामतथोचिताम्॥ २२॥
प्रतप्त इव दु:खेन सोऽपश्यज्जगतीपति:।
 
 
अनुवाद
 
  वह भूमि पर गिरी पड़ी थी और इस तरह से लेटी हुई थी, जो उसके लिए उचित नहीं था। राजा ने दुःख के कारण व्यथित होकर उसे इस हालत में देखा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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