श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 77: राजा दशरथ का पुत्रों और वधुओं के साथ अयोध्या में प्रवेश, सीता और श्रीराम का पारस्परिक प्रेम  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  1.77.29 
 
 
तया स राजर्षिसुतोऽभिकामया।
समेयिवानुत्तमराजकन्यया।
अतीव राम: शुशुभे मुदान्वितो
विभु: श्रिया विष्णुरिवामरेश्वर:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता जी का हृदय श्री राम में ही रमा हुआ था, और श्री राम भी सीता जी से ही प्रेम करते थे। जैसे भगवान विष्णु शोभा पाते हैं देवी लक्ष्मी के साथ, वैसे ही सीता जी के साथ राजा दशरथ के पुत्र श्री राम बहुत प्रसन्न थे और शोभनीय लगते थे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे सप्तसप्ततितम: सर्ग:॥ ७७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें सतहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७७॥
॥ बालकाण्डं सम्पूर्णम् ॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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