तया स राजर्षिसुतोऽभिकामया।
समेयिवानुत्तमराजकन्यया।
अतीव राम: शुशुभे मुदान्वितो
विभु: श्रिया विष्णुरिवामरेश्वर:॥ २९॥
अनुवाद
सीता जी का हृदय श्री राम में ही रमा हुआ था, और श्री राम भी सीता जी से ही प्रेम करते थे। जैसे भगवान विष्णु शोभा पाते हैं देवी लक्ष्मी के साथ, वैसे ही सीता जी के साथ राजा दशरथ के पुत्र श्री राम बहुत प्रसन्न थे और शोभनीय लगते थे।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे सप्तसप्ततितम: सर्ग:॥ ७७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें सतहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७७॥
॥ बालकाण्डं सम्पूर्णम् ॥