एक दिन मैं यज्ञ के लिए भूमि तैयार कर रहा था। उस समय हल के अग्रभाग से जोती गई भूमि से एक कन्या का प्रादुर्भाव हुआ। सीता (हल द्वारा खींची गई रेखा) से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम सीता रखा गया। पृथ्वी से प्रकट हुई वह मेरी कन्या धीरे-धीरे बड़ी हुई और समझदार बन गई।