श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 65: विश्वामित्र की घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्मणत्व की प्राप्ति तथा राजा जनक का उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवन को लौटना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.65.8 
 
 
अथ वर्षसहस्रं च नोच्छ्वसन् मुनिपुंगव:।
तस्यानुच्छ्वसमानस्य मूर्ध्नि धूमो व्यजायत॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  पूरे एक हजार वर्ष तक उस महान मुनि ने एक बार भी साँस नहीं ली। इस तरह साँस न लेने के कारण उनके सिर से धुआँ उठने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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