श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 65: विश्वामित्र की घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्मणत्व की प्राप्ति तथा राजा जनक का उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवन को लौटना  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  1.65.4-5 
 
 
स कृत्वा निश्चयं राम तप आतिष्ठताव्ययम्।
तस्य वर्षसहस्रस्य व्रते पूर्णे महाव्रत:॥ ४॥
भोक्तुमारब्धवानन्नं तस्मिन् काले रघूत्तम।
इन्द्रो द्विजातिर्भूत्वा तं सिद्धमन्नमयाचत॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुकुलभूषण श्रीराम! अपने निश्चय को मज़बूत बनाकर उन्होंने अक्षय तप का अनुष्ठान किया। उनका एक हज़ार साल का व्रत पूरा हुआ तो उस महान व्रती महर्षि ने व्रत पूरा करके अन्न ग्रहण करना चाहा। उसी समय इंद्र ब्राह्मण का वेश धरकर उनके सामने आये और तैयार अन्न की याचना की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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