रघुकुलभूषण श्रीराम! अपने निश्चय को मज़बूत बनाकर उन्होंने अक्षय तप का अनुष्ठान किया। उनका एक हज़ार साल का व्रत पूरा हुआ तो उस महान व्रती महर्षि ने व्रत पूरा करके अन्न ग्रहण करना चाहा। उसी समय इंद्र ब्राह्मण का वेश धरकर उनके सामने आये और तैयार अन्न की याचना की।