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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 64: विश्वामित्र का रम्भा को शाप देकर पुनः घोर तपस्या के लिये दीक्षा लेना
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श्लोक 15
श्लोक
1.64.15
तस्य शापेन महता रम्भा शैली तदाभवत्।
वच: श्रुत्वा च कन्दर्पो महर्षे: स च निर्गत:॥ १५॥
अनुवाद
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महर्षि के उग्र शाप से तुरंत ही रम्भा एक पत्थर की मूर्ति में परिवर्तित हो गई। महर्षि के उस शापयुक्त वचन को सुनकर कामदेव और इंद्र वहाँ से चले गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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