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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 63: विश्वामित्र को ऋषि एवं महर्षिपद की प्राप्ति, मेनका द्वारा उनका तपोभंग तथा ब्रह्मर्षिपद की प्राप्ति के लिये उनकी घोर तपस्या
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श्लोक 12
श्लोक
1.63.12
स नि:श्वसन् मुनिवर: पश्चात्तापेन दुःखितः॥ १२॥
अनुवाद
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हाथ में धनुष और कंधे पर बाण रखे महान ऋषि विश्वामित्र यह सोचकर पश्चाताप से दुखी हो गए, और उनकी सांस भारी हो गई।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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