श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 60: ऋषियों द्वारा यज्ञ का आरम्भ, त्रिशंकु का सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्र द्वारा स्वर्ग से उनके गिराये जाने पर क्षुब्ध हुए विश्वामित्र का नूतन देवसर्ग के लिये उद्योग  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  1.60.20-21 
 
 
ऋषिमध्ये स तेजस्वी प्रजापतिरिवापर:॥ २०॥
सृजन् दक्षिणमार्गस्थान् सप्तर्षीनपरान् पुन:।
नक्षत्रवंशमपरमसृजत् क्रोधमूर्च्छित:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर तेजस्वी विश्वामित्र ने ऋषियों के बीच दूसरे प्रजापति के समान दक्षिण दिशा के लिए नए सप्तर्षियों का निर्माण किया और क्रोध में भरकर उन्होंने नए नक्षत्रों का भी निर्माण कर डाला।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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