भद्रैर्मन्द्रैर्मृगैश्चैव भद्रमन्द्रमृगैस्तथा।
भद्रमन्द्रैर्भद्रमृगैर्मृगमन्द्रैश्च सा पुरी॥ २५॥
नित्यमत्तै: सदा पूर्णा नागैरचलसंनिभै:।
सा योजने द्वे च भूय: सत्यनामा प्रकाशते।
यस्यां दशरथो राजा वसञ्जगदपालयत्॥ २६॥
अनुवाद
हिमालय पर्वत से उत्पन्न भद्रजाति के, विन्ध्य पर्वत से उत्पन्न हुए मन्द्रजाति के और सह्य पर्वत पर पैदा हुए मृग जाति के हाथी भी वहाँ मौजूद थे। भद्र, मन्द्र और मृग - इन तीनों के मेल से उत्पन्न हुए संकरजाति के, भद्र और मन्द्र - इन दो जातियों के मेल से पैदा हुए संकर जाति के, भद्र और मृग जाति के संयोग से उत्पन्न संकरजाति के और मृग और मन्द्र - इन दो जातियों के सम्मिश्रण से पैदा हुए पर्वताकार गजराज भी, जो सदा मदोन्मत्त रहते थे, उस पुरी में भरे हुए थे। (तीन योजन के विस्तार वाली अयोध्या में) दो योजन की भूमि ऐसी थी, जहाँ पहुँचकर किसी के लिए भी युद्ध करना असंभव था, इसीलिए वह पुरी ‘अयोध्या’ इस सत्य और सार्थक नाम से प्रकाशित होती थी; जिसमें रहते हुए राजा दशरथ इस संसार का (अपने राज्य का) पालन करते थे।