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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 56: विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठजी पर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग,वसिष्ठ द्वारा ब्रह्मदण्ड से ही उनका शमन,विश्वामित्र का ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के लिये तप करने का निश्चय
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श्लोक 23
श्लोक
1.56.23
धिग् बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजोबलं बलम्।
एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे॥ २३॥
अनुवाद
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‘क्षत्रिय का बल व्यर्थ है। ब्रह्मतेज से प्राप्त होने वाला बल ही सच्चा बल है; क्योंकि आज एक ब्रह्मदंड ने मेरे सभी अस्त्रों को नष्ट कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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