श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 56: विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठजी पर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग,वसिष्ठ द्वारा ब्रह्मदण्ड से ही उनका शमन,विश्वामित्र का ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के लिये तप करने का निश्चय  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.56.20 
 
 
ततोऽस्तुवन् मुनिगणा वसिष्ठं जपतां वरम्।
अमोघं ते बलं ब्रह्मंस्तेजो धारय तेजसा॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् समस्त मुनि गण श्रेष्ठ मंत्र जाप करने वाले वसिष्ठ मुनि की स्तुति करते हुए बोले- "हे ब्रह्मन्! आपका बल असीम और अमोघ है। आप अपने तेज को अपनी शक्ति से समेट लीजिये।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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