श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 56: विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठजी पर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग,वसिष्ठ द्वारा ब्रह्मदण्ड से ही उनका शमन,विश्वामित्र का ब्राह्मणत्व की प्राप्ति के लिये तप करने का निश्चय  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.56.17 
 
 
ब्रह्मास्त्रं ग्रसमानस्य वसिष्ठस्य महात्मन:।
त्रैलोक्यमोहनं रौद्रं रूपमासीत् सुदारुणम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मास्त्र को शांत करते हुए महात्मा वसिष्ठ का वह रौद्र रूप तीनों लोकों को मोहित करने वाला और अत्यंत भयावह प्रतीत हो रहा था, जिसको देखकर स्वर्ग, मृत्युलोक और पाताल तीनों लोक मोहित हो गए थे और सभी भयभीत हो गए थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.