श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 55: अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके दिव्यास्त्र पाना, वसिष्ठजी का ब्रह्मदण्ड लेकर उनके सामने खड़ा होना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  1.55.23 
 
 
वसिष्ठस्य च ये शिष्या ये च वै मृगपक्षिण:।
विद्रवन्ति भयाद् भीता नानादिग्भ्य: सहस्रश:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  वसिष्ठ जी के आश्रम में रहने वाले शिष्य और पक्षी-जानवर, जो हज़ारों की तादाद में थे, डर के मारे चारों दिशाओं में भाग खड़े हुए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.