श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 55: अपने सौ पुत्रों और सारी सेना के नष्ट हो जाने पर विश्वामित्र का तपस्या करके दिव्यास्त्र पाना, वसिष्ठजी का ब्रह्मदण्ड लेकर उनके सामने खड़ा होना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  1.55.15 
 
 
एवमुक्तस्तु देवेन विश्वामित्रो महातपा:।
प्रणिपत्य महादेवं विश्वामित्रोऽब्रवीदिदम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  महातपस्वी विश्वामित्र ने जब महादेवजी की बात सुनी तो उन्होंने उन्हें प्रणाम किया और इस प्रकार कहा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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