श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 1: बाल काण्ड  »  सर्ग 54: विश्वामित्र का वसिष्ठजी की गौ को बलपूर्वक ले जाना, गौ का दुःखी होकर वसिष्ठजी से इसका कारण पूछना, विश्वामित्रजी की सेना का संहार करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.54.14 
 
 
न बलं क्षत्रियस्याहुर्ब्राह्मणा बलवत्तरा:।
ब्रह्मन् ब्रह्मबलं दिव्यं क्षात्राच्च बलवत्तरम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मन्! क्षत्रियों का बल कोई सच्चा बल नहीं है। ब्राह्मण क्षत्रिय आदि से भी अधिक बलवान होते हैं। ब्राह्मण का बल दिव्य और अलौकिक है। वह क्षत्रिय के बल से अधिक प्रबल होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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