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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 1: बाल काण्ड
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सर्ग 52: महर्षि वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र का सत्कार और कामधेनु को अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश
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श्लोक 18
श्लोक
1.52.18
एवं ब्रुवन्तं राजानं वसिष्ठं पुनरेव हि।
न्यमन्त्रयत धर्मात्मा पुन: पुनरुदारधी:॥ १८॥
अनुवाद
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वसिष्ठ जी ने उदार चित्त वाले धर्मात्मा राजा विश्वामित्र से कई बार विनती की कि वे उनके निमंत्रण को स्वीकार करें।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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